अवलोकन
- भील प्रदेश की मांग एक बार फिर लाॅकडाउन में बढ़ गई है। #WeWantSeparateBHILPRADESH हैशटैग 25 मई को सबसे अधिक प्रचलित हैशटैगों में से एक रहा है ।
- भारत के सबसे बड़े जनजातीय समूह ने दावा किया है कि सरकार केवडिया, गुजरात से उन्हें विस्थापित करके 1989 के एससी और एसटी अधिनियम की धारा 5 का उल्लंघन कर रही है।
- 2017 में गठित भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) द्वारा इस मांग को बढ़ावा मिला है।
विषय – सूची
- कौन हैं भील लोग?
- भील आंदोलन का इतिहास
- आंदोलन उत्पत्ति के कारण
- डेटा से पता किये गये कुछ दिलचस्प तथ्य
- अन्त में
1. कौन हैं भील लोग?
भील एक आदिवासी जनजाति है। ये भारत के कई राज्यों में पाए जाते हैं। भील आबादी का अधिकांश भाग देश के पश्चिमी दक्कन के क्षेत्र (राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़), मध्य प्रदेश और त्रिपुरा में केंद्रित है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भील आदिवासी समुदायों का एक समूह है जो धनुष का इस्तेमाल करते हैं। माना जाता है कि भील शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ शब्द ‘बिल्ला’ या ‘बिल्लू’ से हुई है जिसका अर्थ है धनुष।
भील समुदाय के नागरिकों का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता हैं। वे जल, जंगल और जमीन के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं।
माना जाता है कि भारत का यह सबसे बड़ा (जनसंख्या के संदर्भ में) जनजातीय समूह हजारों वर्षों से उपमहाद्वीप में निवास करता है।
भील अपने स्थानीय वातावरण – जल, जंगल और ज़मीन के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं। इनका मुख्य व्यवसाय खेती है। हालाँकि, हाल के घटनाक्रमों ने उन्हें उनके मूल स्थान को छोड़ने के लिए मजबूर किया है। भील समुदाय के अधिकांश लोग गुजरात और राजस्थान के सबसे अविकसित क्षेत्रों में रहते हैं। विकास के अभाव के कारण समुदाय में सरकारों के प्रति असंतोष बढ़ा है।
अगले भाग में हम देखेंगे कि पिछले कुछ वर्षों में किस प्रकार से आंदोलन ने रूप लिया।
2. आंदोलन का इतिहास
इस खंड में हम देखते हैं कि समय के दौरान आंदोलन कैसे बना।
2.1. ब्रिटिश युग से पहले के भील
1818 से पहले भील मेवाड़, बाँसवाड़ा और अन्य स्थानीय राज्यों में महत्वपूर्ण भूमिका में थे। उन्हें अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों से सुरक्षा-कर एकत्र करने की अनुमति थी। 1818 में, इन राज्यों ने ब्रिटिश प्रशासन के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए। इसके परिणामस्वरूप भीलों द्वारा अपनी बस्ती के लिए जो कर वसूले जाते थे, उन्हें ब्रिटिश प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया।
इससे भीलों में असंतोष की पहली लहर उठी। इसके परिणामस्वरूप पहला भील विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को प्रशासन ने सेना की मदद से कुचल दिया था। लेकिन यह शांति स्थायी नहीं थी।
इन क्षेत्रों में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए 1841 में मेवाड़ भील कोर (एमबीसी) की स्थापना की गई। कुछ वर्षों के भीतर, 1857 का विद्रोह हुआ। अंग्रेजों ने भीलों पर नए कर लगाए। अब भीलों को करों का भुगतान किए बिना प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करने की अनुमति नहीं थी।
2.2. गोविंद गुरु भील की भूमिका
19 वीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में, एक नया नाम भील समुदाय के बीच लोकप्रिय हुआ। नाम था गोविंद गुरु। गोविंद गुरु को एक धार्मिक नेता और समाज सुधारक के रूप में देखा जाता था जिन्होंने भील समुदाय को एकजुट किया। वही थे जिन्होंने भील समुदाय की गलत आदतों और धारणाओं को खुले तौर पर संबोधित किया। आखिरकार, गोविंद गुरु पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भीलों के लिए एक अलग समर्पित क्षेत्र की मांग की।
ब्रिटिश सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया। मानगढ़ नरसंहार ब्रिटिश इतिहास के काले पन्नों में से एक है जब 1913 में एक सभा में गोविंद के कई अनुयायियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बाद में 1931 को गोविंद भील की मृत्यु हो गई। फिर, भील आंदोलन भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में विलीन हो गया।
3.आंदोलन की उत्पत्ति के कारण
3.1. विकास के कारक
स्वतंत्रता के बाद भीलों को सरकार ने रोजगार देने और कई भत्तों का वादा भी किया था। भीलों ने अपनी सरकार का सपना देखा था। उन्होंने उन दिनों को वापस पाने का सपना देखा था जब उन्होंने उनकी मूल भूमि पर उनका शासन था। लेकिन उन्हें वादों से ज्यादा कुछ नहीं मिल सका। ब्रिटिश भारत का तथाकथित भील देश क्षेत्र अंततः चार राज्यों में विभाजित हो गया। भीलों का दावा है कि सभी सत्ताधारी दलों ने उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है। भील समुदाय के अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र राजस्थान और गुजरात के सबसे अविकसित क्षेत्रों में हैं। भीलों का दावा है कि सरकार की योजनाएँ उन्हें वह नहीं प्रदान करती हैं जो उनसे वादा किया जाता रहा है।
3.2. सरदार सरोवर बांध
1990 और 2000 के दशक में सरदार सरोवर बांँध परियोजना की वजह से भील समुदाय को अपनी मातृभूमि को छोड़कर जाने के लिए बाध्य होना पड़ा। 41000 से अधिक परिवारों को उनकी मातृभूमि से बाहर कर दिया गया। करीब 250 गाँव जलमग्न हो गए। प्रारंभ में भील अपनी जगह छोड़कर हटना नहीं चाहते थे । संचार की कमी के कारण उनमें से बहुतों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि सरकार की तरफ से उनके लिए क्या निर्णय लिया गया है। बाद में कुछ भील नेताओं ने सरकार की इस योजना को स्वीकार किया। लेकिन नये तरीके से अपने आप को ढालना आसान नहीं था। घर बसाने में कई साल लग गए। इसने समुदाय के लोगों को नकारात्मक तरीके से प्रभावित किया।
3.3. एकता की मूर्ति (Statue of Unity)
मोदी सरकार के द्वारा नर्मदा नदी में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की योजना बनाई गई। यह केवडिया में स्थित है। प्रतिमा के चारों ओर एक पर्यटन स्थल बनाया जायेगा । इसके लिए आसपास के क्षेत्र में रहने वाले भील लोगों को भी अलग जगह ले जाने की आवश्यकता है। सोशल मीडिया पर प्रसारित कई लोगों और वीडियो क्लिप का दावा है कि उन्हें अपने स्थानों से बाहर जाने के लिए मजबूर किया गया। जिसके लिए उन्हें प्रताड़ित भी किया गया।जिसकी वजह से वो आंदोलन करने पर मजबूर हो गए।
3.4.भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) की भूमिका
2017 में कहानी में एक नया मोड़ आया। महेशभाई छोटूभाई वसावा नाम के एक आदिवासी नेता ने गुजरात विधानसभा चुनाव से कुछ ही हफ्ते पहले भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) की स्थापना की। 2015 में स्थापित एक छात्र संगठन भील आदिवासी छात्र मोर्चा की स्थापना हुई। BTP का प्रमुख उद्देश्य सक्रिय राजनीति में शामिल होकर आदिवासी लोगों की माँग को आगे बढ़ाना है। उन्होंने भील समुदाय के लिए अलग राज्य की माँग रखी है।
कुछ ही महीनों में पार्टी अपने दो विधायकों के साथ गुजरात विधानसभा में जगह बनाने में सफल रही। बाद में उन्होंने राजस्थान में भी दो सीटें जीतीं।
25 मई को पार्टी ने सोशल मीडिया पर भील प्रदेश की माँग को उठाने के लिए समुदाय के सभी सदस्यों को आमंत्रित किया था। कुछ ही घंटों में हैशटैग #WeWantSeparateBHILPRADESH 5,03,000 उपयोगकर्ताओं तक पहुँच गया। अगले भाग में हम उन कुछ रोचक तथ्यों को देखने का प्रयास करेंगे, जो हमने आंकड़ों से निकाले हैं।
4. डेटा से पता किये गये कुछ दिलचस्प तथ्य
पूरी कहानी के बारे में बात करने के बाद आइए चर्चा करें कि विश्लेषण किए गए डेटा से हमें क्या मिला।
4.1.आंदोलन का भावनात्मक विष्लेषण ( Sentiment Analysis)
आंदोलन के संभावित भविष्य के परिणामों का विश्लेषण करने के लिए, हमने 25 और 26 मई के दौरान पोस्ट किए गए ट्वीट में भील समुदाय की भावना को समझने की कोशिश की। हम भील प्रदेश से संबंधित 440 ट्वीट्स ढूंढने में सफल हुए। अध्ययन से निम्नलिखित परिणाम मिले:
- ट्वीट्स की सँख्या बहुत बड़ी नहीं है। इसका मतलब है कि आंदोलन बहुत कठोर नहीं है।
- भावनात्मक विश्लेषण से पता चला है कि सबसे अधिक ट्वीट सकारात्मक हैं। हालांकि गुस्सा सबसे प्रमुख भावना है। सकारात्मक भावना एक अच्छा संकेत है क्योंकि इसका तात्पर्य है कि इस आंदोलन के जाट आंदोलन की तरह गलत रास्ते पर जाने का खतरा नहीं है, जिससे जनता को कोई नुकसान पहुँचने का खतरा हो। यह 31 मई को प्राप्त आंकड़ों पर आधारित है। नीचे के चित्र में ट्वीट्स से जुड़ी विभिन्न भावनाओं की धारिता को समझा जा सकता है।

- शब्दों की आवृत्ति वर्ड-क्लाउड (word cloud) के रूप में नीचे दर्शाई गई है। जो शब्द अधिक प्रयोग हुए हैं उनका आकार बड़ा तथा कम प्रयोग हुए शब्दों का आकार तुलनात्मक रूप से छोटा है। यहाँ हम 1896 को एक महत्वपूर्ण शब्द के रूप में देख सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई ट्वीट्स में एक ब्रिटिश कालीन नक्शे के बारे में बात की गई थी, जिसे भील राष्ट्र कहा गया है। यह संभव हो सकता है क्योंकि अँग्रेजों ने 1890 के दशक में भारत को एक इकाई के रूप में नहीं माना था। भारतीय उपमहाद्वीप ब्रिटिश लोगों के लिए 500 से अधिक रियासतों का समूह था।
अगले भाग में हम प्रमुख राज्यों में भील समुदाय की जनसांख्यिकी के बारे में बात करेंगे।
4.2. जनसांख्यिकी अध्ययन से क्या पता चलता है?
हमने आगे के आंकड़ों को जानने के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। दिए गये डोनट चार्ट के द्वारा विभिन्न राज्यों में भील समुदाय की मौजूदा जनसंख्या को प्रदर्शित किया गया है।
हमें भील समुदाय के बारे में निम्नलिखित तथ्यों का पता चला है:
- विभिन्न राज्यों में इस समुदाय के भीतर लिंग अनुपात समान दिखता है। इससे यह पता चलता है कि-यह प्राकृतिक लिंगानुपात है और इस समुदाय में कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाएँ बहुत आम नहीं लगती हैं।
- हम साक्षरता दर और प्रवासी श्रमिकों के प्रतिशत के बीच एक सकारात्मक संबंध (Positive Correlation) देखते हैं। इससे पता चलता है कि शिक्षित भील समुदाय के लोग आमतौर पर अपना मूल स्थान छोड़ देते हैं। इसका मतलब यह भी है कि अधिकतर इलाके जहां भील लोग रहते हैं, उनके पास पर्याप्त अवसर नहीं हैं।
4.3. भील तथा अन्य जनजातियां
अगले चरण में हमने विभिन्न प्रमुख राज्यों में रहने वाले सभी जनजातियों के औसत आँकड़ों के साथ भील लोगों के बुनियादी आँकड़ों की तुलना की है। जिन्हें ढ़ूढ़नें में हम कामयाब रहे:
- अधिकांश राज्यों में भील लोगों का लिंग अनुपात या तो सभी जनजातियों के लिंगानुपात के बराबर है या उससे अधिक है। केवल कर्नाटक और त्रिपुरा विपरीत आंकड़े दिखाते हैं।
- अधिकांश राज्यों में, भील समुदाय की साक्षरता दर राज्य की सभी जनजातियों की औसत साक्षरता दर से कम है।
- गुजरात और कर्नाटक में प्रवासी श्रमिक भीलों का प्रतिशत राज्य की सभी जनजातियों की औसत दर से अधिक है। बाकी राज्यों में यह औसत से कम है। यह दर्शाता है कि आम तौर पर भीलों में अन्य मूल जनजातियों की तुलना में अपनीं मातृभूमि को छोड़ने की प्रवृत्ति कम होती है।
उपरोक्त तथ्यों से पता चलता है कि भील उन समुदायों में से हैं, जहाँ सरकार की योजनाओं से उतना सकारात्मक बदलाव नहीं आया जितना कि वे कुल औसत जनजातियों में आया है।
5. अंत में
अपने अध्ययन में हमने पाया कि भील समुदाय एक वंचित समुदाय है। यह लोग अपनी मातृभूमि से जुड़े हुए हैं। हालिया घटनाक्रम और योजनाओं ने उन्हें नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। उनकी माँगों को देखते हुए यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उन्हें उनके अधिकार मिल रहे हैं या नहीं। अभी के लिए, भील आंदोलन एक शांतिपूर्ण आंदोलन है और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके विकास पर ध्यान दिया जाए, जिससे वह स्थिती न आए कि एक और हानिकारक क्रान्ति का जन्म हो।